Wednesday, April 22, 2020



क्या कहा ? वो , सुधर गया होगा!
हाँ । गिरा था शायद, सम्भल गया होगा ।
कहाँ है आजकल , दिखता नहीं कहीं,
डरता तो नहीं प्रकाश , मर गया होगा।

मेरा गाँव


एक बंद कमरे में, एक पंखे के नीचे लेटकर, बाहर सूरज कब निकला पता नहीं चलता।
कभी पेपरवाले की ,कभी सब्जीवाले की, आवाज से नींद खुलती है ,
तो गांव में चिड़ियों की चहक याद आती है।

 गरीबी में भी कभी सूखी रोटी नहीं खाई।
मां जबरदस्ती देसी घी लगा देती थी।
साठ रूपये लीटर वाले अमूल में ,
जब चीनी के बिना कोई स्वाद नहीं आता ,
तो गाय के ताजे दूध की महक याद आती है।

 मेरे बगीचे के आम का पेड़ , मेरे नाश्ते का इंतजाम करता ।
बगल में लहलहाती  नींम कहती बिना दातून नाश्ता नहीं ।
सुबह नौ बजे के बाद जब पानी नहीं मिलता,
 तो गांव के तालाब में सूरज की झलक याद आती है।

लड़ना झगड़ना लगा रहता, मगर हर कोई यह जानता था।
दुख किसी के अकेले नहीं होते।
हम भी तो सुतहरिन को जलेबी कहते गाली सुनते थे।
ओ मेरा गांव जिंदादिल था, बात करता था।
 इस शहर की मुर्दा दीवारें साहब अच्छी लगे पर अपनी नहीं लगती।

                                      - विजय प्रकाश

Monday, April 20, 2020

कविता

हम तो आवारा झोंके हैं ,कौन जाने किधर जायेंगे,
टकरायेंगे, टूटेंगे भी ,और फिर बिखर जायेंगे
यूँ रुक ही जाना हमारी फितरत नहीं यारो ,
कुछ देर ठहरेंगे, और फिर गुजर जायेंगे।

किसी के काम आये, जिंदगी जाये तो गम नहीं,
सोने-चाँदी, दौलत-शौहरत के मुहताज हम नहीं,
हमें तमन्ना ही नहीं किसी और चीज की यारो ,
तुम बस प्यार दो हमें हम निखर जायेंगे ।

गर दुनिया सागर है, गमो का, तो भी कुछ ग़म नहीं ,
टकरायेंगे लहरों से, लड़खड़ायेंगे भी, और संभल जायेंगे,
बस इतना रहम करना, की देखना तुम किनारे से ,
हम तूफानों के पार, यूँ ही निकल जायेंगे।

हम तो आवारा झोंके है कौन जाने किधर जायेंगे
टकराएंगे टूटेंगे भी और फिर बिखर जायेंगे
                               - Vijay

Thursday, April 16, 2020

गज़ल

गज़ल

आ तुझे पा लूँ , और फिर से तुझे खोऊँ मैं,
तू भी जागे मेरी याद में, तुझे भूल कर के सोऊँ मैं।

तू हो मेरे रुबरू, न शिकयतें न गुफ्तगू ,
न फासला हो दरमियाँ,तुझसे लिपट के रोऊँ मैं।

इक चाँदनी सी रात हो, तेरा और मेरा साथ हो
ये जनम जनम की बात हो इक ख्वाब ये सजाऊँ मैं।

कैसे कहूं तू दूर है, क्यूँ मान लूँ कि जुदा हैं हम,
तू साँसों में थी खो गई, तुझे धड़कनों में पाऊँ मैं।

मेरा ख्वाब तू, दीदार तू, तू मुक्ति है, संसार तू,
तू आती है हर साँस में, कैसे तुझे भुलाऊँ मैं।

अब तुझको क्यूँ याद करूँ, क्यूँ फिर से तुझे बुलाऊँ मैं
तू चली गई तो चली गई, क्यूँ अपना दिल जलाऊँ मैं।


                                      - Vijay Prakash