Sunday, March 1, 2020

गज़ल

हमें इश्क़ है तुमसे ये मसला हमारा है,
तुम्हें बुलाने को इश्क़ की दुहाई क्यूँ देते।

तुम्हें करनी चाहिए थी मुझे समझने की कोशिश,
हम गलत नहीं थे, तो फिर सफाई क्यों देते।

अब खुद से आए, और खुद ही जाने लगे आप,
 हमने न्योता नहीं भेजा तो विदाई क्यों देते।

अपनी जान को उसकी ज़िन्दगी सौंप कर लौट आए,
हुए नाकाम इश्क़ में हम, उसे जुदाई क्यों देते।

आखिरी सांस तक बस उसी को याद किया हमने,
अब इश्क़ के तोहफे में हम, बेवफ़ाई क्यों देते।

उसने कहा कि उसे मेरी मोहब्बत नहीं कबूल,
फिर उसकी गली में हम कभी दिखाई क्यों देते।
           
                              -  विजय प्रकाश यादव ,
                               संत कबीर नगर (उ. प्र.)

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